महफ़िल है सजी
महफ़िल है सजी
आँखें तेरी उलझन की गली
ज़ुल्फें हैं तेरी बिखरे से सजी
इल्ज़ाम लगे हैं दिल पे तेरे
नींदों का मेरी क़ातिल है यही
सहमी हुई साँसे हैं मेरी
ख़्वाहिश से भरी आहें हैं मेरी
एक शोर मचा है धड़कन में
ढूंढे जो तुझे राहें हैं मेरी
पूरे ना हुए पर झूठे तो नही
वादे जो सुने दिल ने थे कभी
पूरी ज़िंदगी हम सोचे रहे
की चाँद है सिर्फ़ हमारी
छत का मेहमान
एक फूल खिले दिन के जो तले
और सो जाए जो रात ढले
वो रात हूँ मैं वो फूल है तू
मिलते ही नही सदियों के परे
नाम तेरे शामें हैं करी
यादों से तेरी महफ़िल है सजी
किरदार कहानी का मैं रहा
हक़ीक़त थी नसीब नहीं