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सागर जी

Romance

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सागर जी

Romance

तेरी याद में

तेरी याद में

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याद तेरी, रातों को ख्वाब बनकर,

आती है मुझे खुशबू, गुलाब बनकर।


सुबह की लाली, तेरा नाम लेती है,

मैं आ गई हूं, जैसे ये कहती है।


शाम का साया, जब भी गहराया,

मन को मेरे, बेहद तड़पाया ।


हुई रात, चांदनी की आग लगाई,

कितनी बेदर्द, मेरे दिल में पर दाग़ लगाई।


ख़्वाब ने रातों को जगाकर पूछा

मुझसे, क्या नाराज़ है ! रोकर पूछा।


इस तरह, तन्हाई मिली भीड़ में,

अकेले में भी, सिसकती रही भीड़ में।


हां, याद आया, उसी का दिया है ये पैग़ाम,

जिसकी याद में छलक रहें हैं , अश्कों के जाम ।।



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