दो हाथ कपड़ा, दो गज भूमि,दो जून रोटी
दो हाथ कपड़ा, दो गज भूमि,दो जून रोटी


इक रही चला रोजगार खोजने,
और चला, सपनो का इक संसार खोजने।
राहें ही राहें दृष्टिगत होती हैं,
नहीं दिखाती अब आस कोई।
मिलेगा उसे मन का मंदिर कहीं,
नहीं मन में ऐसा विश्वास कोई।
किधर जाए, स्वयं से ही पूछता,
आस का दीया, फिर भी मन में जलता।
लक्ष्यविहीन सा राहों में चला जा रहा है,
पथ की कठिनाइयों से लड़ा जा रहा है।
लक्ष्य क्या तेरा ? मार्ग ने प्रश्न किया,
दो हाथ कपड़ा, दो गज भूमि, दो जून रोटी,
राही ने उत्तर दिया।
मार्ग ने कहा, अपने लक्ष्य की ओर तू बढ़ता जा,
राहों की कठिनाइयों से लड़ता जा,
लक्ष्य तुझे गले लगा लेगा,
सफलता कदम चूमेगी,
ईश्वर तुझे थाम लेगा।