बाबा साहेब, आंबेडकर महान
बाबा साहेब, आंबेडकर महान
तुम ना करते संघर्ष तो, क्या होता हमारा।
मैं कांप उठता हूं बाबा, तुम्हारा ना होता सहारा।।
तुम संघर्ष करके, शिक्षित बने,
वंचित थे, हर सुविधा से पर,
फिर भी, विद्वान, पंडित बने ।।
वर्ण व्यवस्था की पंडिताई को, तुमने सार्थक किया,
इतना ज्ञान अर्जित किया, मनुस्मृति को खंडित किया।
न्याय, समता, बंधुत्व, तुम्हारा उद्देश्य था,
अपनी जाति को अवसर, सम्मान दिलाना लक्ष्य था।
अपने लिए कब, कहां तुम जीये,
वंचितों के लिए स्वर्ण आसन की
व्यवस्था करने, कांटों पर सोए।।
हे महामानव ! कहां से लाए ये विधा,
वर्षों से जो समाज, दबा कुचला था,
उसके उत्थान का बीड़ा उठा लिया,
झाड़ू, रापी, कटार लेकर, काग़ज़-कलम दे दिया।
खुद जागे रात - रात भर, ताकि हम सो सकें,
विरोध सहा रोज़, ताकि हम जी सके।
तुम दुखहर्ता, तुम विघ्नहर्ता, पालनहार,
मसीहा बने हर वंचित वर्ग के,
तुमने किया, अपने समाज का उद्धार ।
दिया भारतीय संविधान, मां भारती के हाथों में,
न्याय, समता, बंधुत्व, अवसर की व्यवस्था कर दी।
बरसों से सह रहे थे, दुत्कार, दुराचार, अत्याचार,
हे भारत रत्न ! संघर्ष से हम सब की पीड़ा हर दी।।
तुम्हारे दिए गए मंत्रों पर चलेंगे, आगे बढ़ेंगे,
पढ़ेंगे - लिखेंगे, एक रहेंगे, अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे।।