कहो भाई, कहां चलें
कहो भाई, कहां चलें
पाप से दूषित संसार,
और पाप की ही भरमार।
पाप ही जीवन कलयुग का,
और पाप ही है आधार ।।
मानव मानव को काटता,
मानवता को हिस्से में बांटता।
नहीं शत्रुता किसी की किसी से,
क्यों मानव पाप ही को छांटता।।
हिंसा,द्वेष,अभिमान कहीं,
प्रारंभ है पर, अंत नहीं ।
जग में इक रीत बना अत्याचार,
क्या था क्या बना दिया संसार।।
कोई रोए अन्न जल को,
किसीको मृत्यु का भय सताए।
कोई ईश्वर मनाता, धन और छल को,
कोई पाप कर भी बार बार बच जाए ।।
मानवीय गुणों ने किया पलायन,
पाप का हो गया जग में राज ।
कल तक जग में रामराज था,
पाप ही पाप है जग में आज ।।
कहो भाई सत्य ! तेरा हाथ
पकड़कर किस ओर प्रस्थान करें।
कहां मिलेगी मुक्ति हमें,
किस गंगा में हम स्नान करें ।।