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Jiwan Sameer

Romance

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Jiwan Sameer

Romance

क्यों छुपाये बैठी हो

क्यों छुपाये बैठी हो

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मादक मनुहार लिए

कामनाओं की ठांव लिए 

प्रेम भरा पैगाम लिए 

स्नेह का साराा गांव लिए

आंचल से ढक

लरजती गोरे मुखड़े को

क्यों छुपाये बैठी हो

क्यों शरमाये बैठी हो


तन की सीमा में 

मन की मीमांसा में 

सिसकी की अविरल धारा ले

विकल प्रााणों की कारा में

हाथ में लेकर टुकड़ा

कागज का

क्यों छुपाये बैठी हो 

क्यों भावनाएँ दबाये बैठी हो


डगमगाते डग धूल धूसरित पग

उड़ते नहीं खग उमगित होकर भी रग रग

दिल के दरवाजे ढक

प्रेम की गोधूूलि में

चंचल मन पंछी को

क्यों छुपाये बैठी हो 

क्यों ताला लगाये बैठी हो


उठते इन हाथों को

विनती भरे जज्बातों को

छूटे शब्दों के उलाहनों को

भ्रमर के लुभावनोंं को

हहराती स्पर्श के 

स्पंदन से

अधरों पर लालिमा

क्यों छुपाये बैठी हो 

क्यों मुरझाए बैठी हो!


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