ग़ज़ल
ग़ज़ल
गीत हो या तुम कोई ग़ज़ल हो,
खिलता हुआ बस एक कँवल हो।
मेरे ख्वाबों की ताबीर है जिसमें,
वो ही सजा हुआ एक रंग महल हो।
कहने को क्या क्या कहते हैं लोग ,
तुम पावन इतनी जैसे गंगा जल हो।
देखे रोम रोम हो जाता पुलकित ,
तुम तो ऐसी ही मृगनयनी चंचल हो।
भावों में है हिमालय सी ऊंचाई ,
मन से तुम गहरा सागर निर्मल है।
क्या क्या लिखूं मैं तेरे तसव्वुर में,
तुम बस चलती फिरती एक ग़ज़ल हो।