फासलों की कशिश से कहाँ मरती है प्रेम की चरम। फासलों की कशिश से कहाँ मरती है प्रेम की चरम।
शायद नहीं ये मेरे वसंत का ही आगमन है। शायद नहीं ये मेरे वसंत का ही आगमन है।
मैं रोम रोम अम्बर सी रचने लगी सच तुम जैसे स्वप्निल हो साथ चले। मैं रोम रोम अम्बर सी रचने लगी सच तुम जैसे स्वप्निल हो साथ चले।
और सुकून आहों का बहुत जालिम हो तुम ! और सुकून आहों का बहुत जालिम हो तुम !
यकीन रखना उन खुशियों से चौगुनी खुशी दे कर तुम्हारे जीवन को खुशहाल बनाऊंगी। यकीन रखना उन खुशियों से चौगुनी खुशी दे कर तुम्हारे जीवन को खुशहाल बनाऊंगी...
मेरा रोम रोम खुद पे इतराया तू अनाड़ी न जान पाया या बहाना कोई बनाया मेरा रोम रोम खुद पे इतराया तू अनाड़ी न जान पाया या बहाना कोई बनाया