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Yogesh Kanava

Abstract Romance

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Yogesh Kanava

Abstract Romance

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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नयन कटीले, मगर बावरी सी,

वो शोख हसीना, मगर सांवरी सी।

अपने ही ख्यालों में वो गम रहती, 

ख़ामोश मगर, मन से भ्रामरी सी। 

मौन भाषा में वो सब कुछ कहती,

मन चंचल, मगर रहे वो बावरी सी। 

मन ही में रही मन की सब बातें,

मन ही से बानी अब वो बावरी सी। 

जो समझे कोई मन को उसके,

बने उसके पीछे ही वो बावरी सी।

नयन मद भर, भरे अंक में वो,

फिरे जग माही, बन बावरी सी। 



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