तुम संग होली
तुम संग होली
तुम संग खेली होली ,वह भुलाई नहीं जाती।
इंतजार है उसी पल का, जो मिटाई नहीं जाती।।
अब तलक वे यादें ,जिगर में संजोए बैठा हूँ,
मदहोशी का आलम है, रंगों को लिए बैठा हूँ।
मुहब्बत कहो या प्रेम रंग, समझाई नहीं जाती।।
खेला तुम संग होली, दिल में तुम समाए हो ऐसे,
प्रेमी बन बैठा तुम्हारा, तुम मेरी प्रेमिका जैसे।
शुक्रगुजार हूँ होली का, जो तुम मुझे भुला नहीं पातीं।।
बन के रहोगी मेरी, यह राज क्यों है छुपाया,
इतने करीब रहकर भी, तुमको मैं समझ न पाया।
कब आएगी फिर होली, तुम्हारी याद है सताती।।
रंगो भरी दुनिया में, एक तुम ही हो सहारा,
बेरंग लगता सब कुछ, अमर रहेगा प्यार हमारा।
तेरी जुदाई तो अब मुझसे, छुपाई नहीं जाती।।
तुम्हारे मिलन की बेला, अब शीघ्र ही मिटेगी,
खेलूूँगा तुम संग होली, जहॉं होलिका जलेगी।
मुहब्बत के रंग में रंग लूँगा, जो सब भेद है मिटाती।।
तुमसे कहूँगा दिल की, जो अब तक कह न पाया,
हर दिन होगी होली, न होगा अपना- पराया।
मिलेंगे अब की हम तुम, जैसे दीया और बाती।।