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Ratneshwar Thakur

Romance

4  

Ratneshwar Thakur

Romance

तुम कब आओगी?

तुम कब आओगी?

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हर रोज सुबह की किरणों से ,

बहती हवा और मंद मुस्काती,

तुम्हारी मुस्कानो से,

सिर्फ एक सवाल,

तुम कब आओगी?

कमरे की दीवारों से,

सुने पलंग और तकियों की, सूनेपन से

शूल सी चुभती, बस एक सवाल

तुम कब आओगी?

सुबह की तिक तिक से,

शाम की झिक झिक तक,

हर बात की, बातों से

हर रोज की, पहली और आखिरी ,

मुलाकातों से, सिर्फ एक सवाल

तुम कब आओगी?

तुम्हारे माथे की बिंदी,

पैरो के पाजेब, और हाथों की चूड़ी,

की खनख़ान ले कर आते हैं ,

सिर्फ एक सवाल

तुम कब आओगी?

हर रोज की तारीखों से,

बस इतना ही उम्मीद लिए बैठा हूं,

वो त्वारिख क्या होगी,

जब तुम आओगी, तुम आओगी ।

कह कर मुझसे बोलोगी,

तुम आओ, अब मुझको जाना है

दिन बीत गए बहुत,

अब बिन तुम्हारे नही मुश्किल रह पाना है,

इतना कहकर एक मुस्कान दोगी,

वो त्वारिख क्या होगी,

जब तुम आओगी, तुम आओगी ।


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