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kavita Chouhan

Romance

4  

kavita Chouhan

Romance

हम दो अंजाने

हम दो अंजाने

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कल तक हम दो अंजाने थे

कुछ अजनबी बेगाने थे

तकदीर ने हमें मिलाया

इक दूजे का साथी बनाया।


हाथों में यूँ हाथ थमाए

किस्मत ने अजब रंग दिखलाये

कभी धूप तो कभी छाँव थी

कहीं ठहरी हुई नाव थी


उपवन में दो सुमन खिल गए

हृदय इक दूजे संग मिल गए

सुंदर सपनों ने श्रृंगार किया

संग-संग चलना स्वीकार किया


बन्धन ये जो मेरा तुम्हारा

सुंदर सुखद और सबसे न्यारा

गठबंधन तुम संग बांध चली

वो पवित्र अग्नि साक्षी बनी


साथ तुम्हारे नया सवेरा

समर्पित तुमको जीवन मेरा

नयनों में सपने ले सजना

छोड़ आई बाबुल का अंगना


कल पूरे होंगे सात फेरे

अरमान न कोई फिर अधूरे

चाँद, तारे बनेंगे साथी

हाथी, घोड़ा और बाराती

 

नित नई ये डोर खास है

उम्मीद भी तो इक विश्वास है

उमंग, तरंग अब आसपास है

स्नेह, प्रेम की न्यून आस है।


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