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kavita Chouhan

Romance

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kavita Chouhan

Romance

तुम न आये

तुम न आये

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चंचल सी चाँदनी छिटकी थी

निशि कुछ मद्धम धूंधली थी

थे नयन इक आस लगाये

रैन बीती तब तुम न आये।


थी पथ पर अनवरत सी खड़ी

अटल बन कभी पर्वत सी अड़ी

बैठी नयन में कजरा सजाये

रैन बीती तब तुम न आये।


आकुल सी हो राह निहारती

कभी मधुर स्मृतियाँ पुकारती

तीव्र समीर आँचल उड़ाये

रैन बीती तब तुम न आये।


हिय भी आज निस्पंद करता

दिल ये अनंत पीड़ा सह लेता

आभास न कुछ मद्धम हुये

रैन बीती तब तुम न आये।


रुँधा कंठ हो नैन भिगोये

शुष्क बन अधर कंपकपायें

धवल नभ स्याह पयोद छाये 

रैन बीती तब तुम न आये।


तीव्र उसासों की वो ध्वनी

अनिमिष निहारती धरा सूनी

घनघोर निशी संग तमस लाये

रैन बीती तब तुम न आये।


था वो स्वप्न सुंदर सुनहरा

स्नेहिल स्मृति सागर गहरा

शुष्क रज पद्चाप बिखराये

रैन बीती तब तुम न आये।


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