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Ratneshwar Thakur

Tragedy

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Ratneshwar Thakur

Tragedy

बेहिसाबी और बेताबी

बेहिसाबी और बेताबी

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आंखों के आँसू,

बेहिसाब हो चले हैं,

दिल-ऐ अम्बार दर्द का,

अब बेहिसाब हो चला है।


अपना पराया कौन भला,

ये सोच के मन कौताहूलित

और दिमाग बेहिसाब हो चला है।


देख दुनिया के रिवायतों को,

अब अपनों से और खुद से,

शिकायत हो चला है।


वक़्त की बेवक़्ति,

और समय की चाल से,

किस्मत बेचाल हो चला है।


आँखों के आँसू

बेहिसाब हो चले हैं।


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