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अंत

अंत

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मेरा मुल्तज़ा न करना,

जो मेरी साँसे बंद हो जाये,

दोजखे-आग की लपटों में,


मेरा निशाँ जब मिट रहा हो,

तुम एक मुस्कान देना,

थोड़ी नमी आंखों में लिए,

मेरे संग मेरे शब्दों की सौपान देना !


अक्षर- अक्षर जब मिट रहे हो,

मेरे यादों को भी मिटा देना,

वैसे भी मैं तुमको कुछ दे ना सका,

सिवाय, शिकवा शिकायत के,


तुम मेरा आखिरी सलाम लेना,

जब दोजखे-आग की लपटें

अपनी शुमार पर हो,

मेरे संग मेरे शब्दों की तुम सौपान देना !


हो जो अश्रू मेरे नाम का,

उसको तुम संभाल लेना,

मेरे सांसो के संग, 

जब में निष्प्राण होऊं,


हो स्थिर भाव मेरे चित को,

तुम एक मुस्कान देना,

जब दोजखे-आग की लपटें

अपनी बेसुमार हो,

मेरे संग मेरे शब्दों की

तुम सौपान देना !


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