मैं जानूँ, या मेरा दिल जाने
मैं जानूँ, या मेरा दिल जाने
कितनी बेकरारी से,
तेरा इंतजार है मुझे।
कितनी सिद्दत से,
करती हो प्यार मुझे।
और तेरे ना होने पर,
फिर दिल पर जो गुजरती है।
या तो मैं जानूं, या मेरा दिल जाने
छत के नीचे छाया भी,
जैसे तपती धूप मालूम पड़ती है।
भीड़ भरी सड़कें भी,
जैसे विरान मालूम पड़ती है।
फिर दिल पर जो गुजरती है
या तो मैं जानूं, या मेरा दिल जाने।
कमरे के हर एक कतरे में,
जब बाल तुम्हारे मिलते हैं।
उन बालों को उंगली मे उलझाकर,
जो मैं सोच-सोच मुस्काता हूँ।
फिर दिल पर जो गुजरती है
या तो मैं जानूं, या मेरा दिल जाने।
हर महीने की वो तारीख,
जो तेरे आने की मुकरर् हुई थी।
जब वो करीब आती है,
और आकर गुजर जाती है।
फिर दिल पर जो गुजरती है
या तो मैं जानूं, या मेरा दिल जाने।
खुद को बहुत बहलाता हूँ,
हंसीं यादों में भटकाता हूँ।
तेरे आने के एहसासों में,
आँखें बंद कर खो सा जाता हूँ।
आँखें खुलने पर,
जब खुद को अकेला पाता हूँ।
फिर दिल पर जो गुजरती है।
या तो मैं जानूँ, या मेरा दिल जाने।
जनवरी की ठंढी रातों में,
जब कम्बल दर कंबल
खुद को ओढ़ाता हूँ।
उल्टा-सीधा होकर,
खुद को गर्माने की
कोशिश करता जाता हूँ।
अधजगी रातों में,
तेरे जिस्म की गर्मी
तब याद आती है।
बिस्तर पर खुद को अकेला पाकर,
फिर दिल पर जो गुजरती है।
या तो मैं जानूँ, या मेरा दिल जाने।