वह मोड़--दो शब्द
वह मोड़--दो शब्द
जिंदगी में जब कभी तुम
भूले भटके ही सही कभी उस मोड़ पर लौट कर आओगी-
मैं रहूं या न रहूं मगर तेरी राहों में
कल भी
इंतज़ार - ए-इश्क में
गाफिल मेरा दिल पाओगी-
आहिस्ता कदम रखना
कहीं दिल की किरचें न चुभ जायें-
तेरी झील सी आंखों से
दर्द भरे दो अश्रु न छलक जायें-
क्योंकि
मर कर भी देखना चाहता हूं
वह चेहरा जो शरमाते हुए मुस्कराता था-
जब बांहों में होती थी
तो पूरा महताब बाजुओं में समाता था-
उन बरसती बूंदों में
मेरे आंसू ही छलकते हैं
गर अहसास अब जिंदा हो तेरे सीने में-
मुझे न दर्द था
न कल और आज होगा
तेरी एक मुस्कान के लिए गरल पीने में-
भुलाना मुश्किल होगा मुझे
भला ही कितनी दूर जाओगी -
तन्हाई में
आंखें करोगी बंद तो यादों में पाओगी
जिंदगी में जब कभी तुम
भूले भटके ही सही कभी उस मोड़ पर लौट कर आओगी-
मैं रहूं या न रहूं मगर तेरी राहों में
कल भी
इंतज़ार - ए-इश्क में
गाफिल मेरा दिल पाओगी-