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Niraj Pandey

Romance

4  

Niraj Pandey

Romance

दिन ढलने लगा है

दिन ढलने लगा है

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सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है 

घड़ी का कांटा टिक टिक करते सांझ की ओर बढ़ने लगा है

तुम्हारे हाथ की चाय को मन मचलने लगा है

ये हल्की हल्की महक है बता रही सेवक पकोड़े भी तलने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है


आओ पास हमारे बैठो इक पहर

काम तुम्हारा तो लगा रहेगा उम्र भर 

वो देखो उस पीले घर के पीछे चांद चुपके से निकलने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है 


यूँ खामोश ना बैठो कुछ बोलो बतियाओ

शाम की मधुर बेला को यूँ ना गँवाओ

देखो कैसे वो कबूतर जोड़ा हरी हरी घास पर टहलने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है 


कभी कुछ बातें गर हमने हो गुस्से में कही

उन बातों को कर के याद न दिल जलाओ पास बैठो

आओ कोई गीत गुनगुनाओ

इन नाजुक से होंठों से गीत कोई सुनने को दिल हमारा मचलने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है 


कैसी ठंडी हवा ये बह रही है कानों में जैसे ये कुछ कह रही है

की इतनी जुदाई ये क्यों सह रही है

तुम्हारे बिन कैसा होता ये जीवन इस कल्पना से भी दिल ये डरने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है 


बैठो हाथों को मेरे जरा थाम लो

अपने मुख से मेरा नाम लो इस हसीन शाम में ये अरमान जगने लगा है

काली बदली से निकलता वो चांद का टुकड़ा तुम्हारी प्रतिमा में बदलने लगा है 

सुनो पंडिताइन दिन ढलने लगा है


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