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Niraj Pandey

Others

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Niraj Pandey

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वो

वो

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फूल बन के कभी खिल जाती थी जो खुशबुओं की तरह महकाती थी जो

याद पल भर में उसकी तबाह कर गई पल पल में हमको याद आती थी जो 


रात भर हम ही से बात करती थी जो ख्वाब में आ कर हमारे संवरती थी जो 

कितने हसीन थे वो दिन और रातें पहलू में आकर बिखरती थी जो 


मिलने से कभी भी न डरती थी जो थोड़ा रुक रुक कर थम थम कर चलती थी जो

वादा कर के भी आई ना नदिया किनारे वादा कर के कभी ना मुकरती थी जो 


अब तो ख्वाबों में आये तो कुछ बात हो थोड़ी दिलकश सी अपनी भी ये रात हो 

कुछ रंग सजाए हम ख्वाबों में ही और ख्वाबों में ही हाथों में ये हाथ हो 


हाथों में मेहंदी लगाए थी जो लाल जोड़े में खुद को सजाए थी वो 

थी होंठों पे उसके इक झूठी हँसी आँखों की नमी को छुपाए थी वो


इश्क में हमको दीवाना बनाये थे जो इक अलग ही दुनिया बसाए थे जो 

आखिरी मैसेज में लिखा था उसने आखिर तुम मेरे लगते कौन हो 


वो गंगा किनारे की फिर शाम हो तेरे होंठों पे फिर से मेरा नाम हो 

कुछ दिन से ये दिल बेचैन है तुमसे मिल लूँ तो दिल को कुछ आराम हो


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