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Niraj Pandey

Others

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Niraj Pandey

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ऑफिस और हम

ऑफिस और हम

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कुछ ऐसे हम दिन -ए -दफ्तर काटते हैं 

फाइलें गुर्राती हैं और अफसर डांटते हैं 


महीने भर जो दिखाते हैं काम के वक्त प्यार 

पगार के दिन वो घंटे भी गिनकर काटते हैं 


यूं तो कहते हैं हम हैं एक परिवार की तरह

खैरात की तरह गालियां वो मगर बांटते हैं 


चमचों पर अपने तो लुटा देते हैं दौलतें 

पगार बढ़ाने के लिए हम चक्कर काटते हैं 


हर ऑफिस में रहते हैं कुछ ऐसे शख्स भी 

जो बताते तो नहीं हैं तलवे मगर चाटते हैं


होशियार रहना है हमें उन लोगों से ही 

जो सांप तो नहीं है फिर भी जहर बांटते हैं




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