प्रेम सगाई
प्रेम सगाई
विधा-लावणी छन्द
(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)
*अ* भी-अभी तो मिली सजन से,
*आ* कर मन में बस ही गये।
*इ* स बन्धन के शुचि धागों को,
*ई* श स्वयं ही बांध गये।
*उ* मर सलोनी कुञ्जगली सी,
*ऊ* र्मिल चाहत है छाई।
*ऋ* जु मन निरखे आभा उनकी,
*ए* कनिष्ठ हो हरषाई।
*ऐ* सा अपनापन पाकर मन,
*ओ* ढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,
*औ* र मेरे सपनों का राजा,
*अं* तरंग मालूम खड़ा।
*अ:* अनूठा अनुभव प्यारा,
*क* लरव सी ध्वनि होती है।
*ख* नखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,
*ग* हना हीरे-मोती है।
*घ* न पानी से भरे हुए ज्यूँ,
*च* न्द्र-चकोरी व्याकुलता।
*छ* टा निराली सावन जैसी,
*ज* रा जरा मृदु आकुलता।
*झ* रझर झरना प्रेम का बरसे,
*ट* सक उठी मीठी हिय में।
*ठ* हर गया हो कालचक्र भी,
*ड* र अंजाना सा जिय में।
*ढ* म-ढम ढोल नगाड़े बाजे,
*त* निक हँसी आ जाती है।
*थ* पकी स्वीकृत मौन प्रेम की,
*द* मक नयन में लाती है।
*ध* ड़क रहा दिल स्नेहपात्र पा,
*न* व नूतन जग लगता है।
*प्र* णय निवेदन सर आँखों पर,
*फा* ग प्रेम सा जगता है।
*ब* न्द करी तस्वीर पिया की,
*भ* री तिजोरी मन की है।
*म* हक उठी सूनी सी बगिया,
*य* ही कथा पिय धन की है।
*र* हना है अब साथ सदा ही,
*ल* गन लगी मन में भारी,
*व* ल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,
' *शु* चि' प्रभु की है आभारी।
*स* कल सृष्टि सुखदायक लगती,
*ष* धा डगर है जीवन ही,
*ह* म बन जायें अब मैं-तुम से,
*क्ष* णिक नहीं आजीवन ही।
*त्रा* स नहीं,सुख की बेला है ,
*ज्ञा* त यही बस होता है।
वर्णमाल सी ऋचा है जीवन,
भाव भरा मन होता है।