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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Romance

4  

Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Romance

प्रेम सगाई

प्रेम सगाई

2 mins
430


    विधा-लावणी छन्द

(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)


*अ* भी-अभी तो मिली सजन से,

*आ* कर मन में बस ही गये।

*इ* स बन्धन के शुचि धागों को,

*ई* श स्वयं ही बांध गये।


*उ* मर सलोनी कुञ्जगली सी,

*ऊ* र्मिल चाहत है छाई।

*ऋ* जु मन निरखे आभा उनकी,

*ए* कनिष्ठ हो हरषाई।


*ऐ* सा अपनापन पाकर मन,

*ओ* ढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,

*औ* र मेरे सपनों का राजा,

*अं* तरंग मालूम खड़ा।


*अ:* अनूठा अनुभव प्यारा,

*क* लरव सी ध्वनि होती है।

*ख* नखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,

*ग* हना हीरे-मोती है।


*घ* न पानी से भरे हुए ज्यूँ,

*च* न्द्र-चकोरी व्याकुलता।

*छ* टा निराली सावन जैसी,

*ज* रा जरा मृदु आकुलता।


*झ* रझर झरना प्रेम का बरसे,

*ट* सक उठी मीठी हिय में।

*ठ* हर गया हो कालचक्र भी,

*ड* र अंजाना सा जिय में।


*ढ* म-ढम ढोल नगाड़े बाजे,

*त* निक हँसी आ जाती है।

*थ* पकी स्वीकृत मौन प्रेम की,

*द* मक नयन में लाती है।


*ध* ड़क रहा दिल स्नेहपात्र पा,

*न* व नूतन जग लगता है।

*प्र* णय निवेदन सर आँखों पर,

*फा* ग प्रेम सा जगता है।


*ब* न्द करी तस्वीर पिया की,

*भ* री तिजोरी मन की है।

*म* हक उठी सूनी सी बगिया,

*य* ही कथा पिय धन की है।


*र* हना है अब साथ सदा ही,

*ल* गन लगी मन में भारी,

*व* ल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,

' *शु* चि' प्रभु की है आभारी।


*स* कल सृष्टि सुखदायक लगती,

*ष* धा डगर है जीवन ही,

*ह* म बन जायें अब मैं-तुम से,

*क्ष* णिक नहीं आजीवन ही।


*त्रा* स नहीं,सुख की बेला है ,

*ज्ञा* त यही बस होता है।

 वर्णमाल सी ऋचा है जीवन,

 भाव भरा मन होता है।


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