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Adarsh Kumar

Romance

4.0  

Adarsh Kumar

Romance

ज़िन्दगी और तुम

ज़िन्दगी और तुम

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सोचा कि लिख दूं आज तुझे कुछ अल्फाजों में 

लेकिन कैसे भला ये मुमकिन है !

तू कोई चीज़ नहीं और ना ही तुझे

बयां कर पाना मेरे बस में है..


तू शायद वो सुकून है जिसकी

मुझे बरसों से तलाश थी,

या फिर तू वो पूरा हुआ ख्वाब है

मेरा जो सदियों से इन आंखों में कैद था।


तेरे साथ रहकर मुकम्मल हुई हूं मैं

या यूं कहूं कि बिन तेरे मैं एक अधूरी कहानी थी

जो हर किसी को पसंद तो थी

लेकिन किसी ने पूरा करने की ख्वाहिश ज़ाहिर नहीं की।


ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं तू ज़िन्दगी बन चुका है मेरी..

और शायद मैं भी तेरी ज़िन्दगी का कोई किस्सा बनकर

हमेशा तेरे दिल में रहूंगी ही।

चाहत मुझे चांद तारों की कभी थी ही नहीं

मगर हां मैं तेरे साथ बैठकर उस चांद को

घंटों तक देखना चाहती हूं।


तुझे पाना अगर एक ख्वाब है तो मैं

हमेशा सोते रहना चाहूं

गी लेकिन तेरे बिना किसी और को

चाहूं इतनी हिम्मत कहां से लाऊंगी !

तू लाख मना कर मुझे इस कदर तुझे चाहने से,

ये मोहब्बत तो बढ़ती ही जाएगी।


तू मिले या ना ये तो मुक्कदर की बात है

पर भरोसा मेरा उस खुदा पर भी तो कम नहीं है।

दुआ है तू मेरी और तू ही दुआ का खुदा है,

धड़कन है जब तू दिल की तो बता कैसे मुझसे जुदा है।


जानते हो कभी कभी तो मन करता है कि तेरी बाहों में

आकर तुझसे लिपट जाऊं और इतना रोऊं कि

उसके बाद आंखों में कोई आंसू बाकी ना रहे,

तू रहे और मैं रहूं बस..चाहे तो मेरी सांस भी साकी ना रहे।


जब कभी तेरी आंखों में देखती हूं तो

लगता है जैसे खुद को ढूंढ लिया हो मैंने,

दुनिया से छुपकर मैं तेरे अंदर ही कहीं रहना चाहती हूं..

काश पढ़ले आज तू उन अनकहे एहसासों को जो

इन लफ़्ज़ों में छुपाए हैं मैंने बस और नहीं

कुछ अब कहना चाहती हूं।


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