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Adarsh Kumar

Abstract

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Adarsh Kumar

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जिंदगी और मैं

जिंदगी और मैं

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कागज़ की कश्ती जैसी

जिंदगी का भरोसा क्या करना,

अरे यार,


गलती तो तुम्हारी हैं

ये सजा आख़िर सबको क्यों भरना


शहर की शाम जैसी जिंदगी हो अगर

आने वाली सुबह पर भरोसा क्या करना !


समंदर जैसे तो तुम ख़्वाब देखते हो

फिर कश्ती टूट जाएगी ऐसे ख्याल क्यों रखना !


कागज़ की कश्ती जैसी जिंदगी का

भरोसा आखिर क्यों करना !


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