सागर कुछ कहना चाहता है
सागर कुछ कहना चाहता है
अथाह जलराशि अंक में समेटे
सागर निरंतर गतिमान है
अनवरत उमंगित कुलांचे भरते
सागर निरंतर प्रवाहमान है
किनारे आये लोगों का स्वागत करता है
लोगों से बतियाने उछलता चला आता है
पर लोग कहां उसे सुनते हैं
तट पर लहरों से खेलते हैं
सागर कुछ कहना चाहता है
सागर दिल हल्का करना चाहता है
समुद्र मंथन की गाथा
रामसेतु की कथा सुनाना चाहता है
द्वारिका में डूबे श्री कृष्ण के महल की व्यथा सुनाना चाहता है
हर बार किनारे पर आता है
कोई श्रोता न मिल पाता है
श्री राम व रावण की युद्ध विभीषिका को
उसने देखा है
लक्ष्मण को तीर लगने पर श्री राम को
रोते उसने देखा है
दिन में सूरज की किरणों से खेलता है
रात में चांद को चूमने उछलता है
जैसे भृगु की लात से विष्णु मन उद्वेलित नहीं होता
वैसे ही जहाज़ों के भार से
सागर का मन विचलित नहीं होता
पानी खारा है कोई पान नहीं करता है
सीप शंख मोती आदि प्रदान करता है
सोचती हूं
किसी सुबह समुद्र की साथी बनूं,
सूरज साक्षी बने सागर वक्ता बने
मैं श्रोता बनूं।।