क्या ढूंढ रहे हो
क्या ढूंढ रहे हो
क्या ढूंढ रहे हो,
जब कुछ खोया ही नहीं,
क्यों आशा करते हो फ़लों की,
जब तुमने बीज बोया ही नहीं।
बहुत कुछ है तुम्हारे पास बताने को,
लेकिन कुछ बोलते नहीं।
ख़ुशी और गम को एक साथ,
क्यों जिंदगी के तराजू पे, एक बार तोलते नहीं
शायद हल्का हो जाये थोड़ा भोझ,
और तुम सही रास्ता लो खोज।
क्या दूर लोगों के पीछे भागना, ठीक है ?
क्यों भूल जाते हो उन्हें,
जो तुम्हारे नजदीक है।
क्या सोचा है कभी
क्यों ये दिल महसूस करता है
जब इसने कभी कुछ छुआ ही नहीं।
जब मिल जाए जवाब,
तो पूछना खुद से ,
क्या ढूंढ रहे हो,
जब कुछ खोया ही नहीं।।