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Kislay Kumar

Abstract

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Kislay Kumar

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गम

गम

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जितने तुम गम देते हो

उतने कहां मरहम देते हो


अब आते हो ,अब आओगे

अक्सर यार भरम देते हो


पीर खनकती है सासों में

जो तुम यार जख्म देते हो


हां जीते है जैसे -तैसे

ऐसे क्यों मौसम देते हो


पहलू से उठकर जाते हो

ऐसे क्यूं यार सितम देते हो।


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