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Piyosh Ggoel

Abstract

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Piyosh Ggoel

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जिंदगी : एक सफर

जिंदगी : एक सफर

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जाग मुसाफिर , सूरज कभी किसी के लिए थमा नही

किसी के लिए लौटा कभी कोई लम्हा नही

मंजिल पाने के लिए मुसाफिर अपने घर से आज तू निकल

सफर बहुत लंबा है इस जिंदगी का , चल मुसाफिर चल


चलना तो पड़ेगा ही तुझे एक दिन काटो के पथ पर

कब तक चलता रहेगा तू फूलो से सजे हुए रथ पर

इस दुनिया की कड़वी हकीकत तो देखनी पड़ेगी

जिसे कहते है दुनियादारी वो बीमारी झेलनी पड़ेगी


आदर्शो से नही बल्कि झूठ से भरी हुई दुनिया देख

इंसान नही झूठ के पुतले और पुतलियां देख

इस सफर में ठोकर खाकर खुद ही सम्भलना पड़ता है

इस सफर में लाख गम सहकर भी हँसना पड़ता है


इस सफर के एक मोड़ पर अपने भी साथ छोड़ते

जिनको माना अपना सब कुछ , एक दिन रिश्ते तोड़ते

जो साथ चलते थे कभी , पीछे से वार करते है वो

रोता है जिंदगी का एक मुसाफिर और हँसते है वो


इस रस्ते में दिखती है फरेबी की शानो शौकत

इस दुनिया के सफर में दिखती है झूठ की हुकूमत

कभी बच्चे से बचपन छीन लिया जाता है

तो कभी मुसाफिर को आशाहीन किया जाता है


काटो से भरा है जिंदगी का सफर

मुश्किल नही है कोई इससे डगर

देख कैसे हर मोड़ पर होता है यहाँपर छल

मुसाफिर , अपने घर से तो निकल।


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