मैं खुश रहूँगी
मैं खुश रहूँगी
नहीं जाता आँखों से वो मंजर,
जब तुम छोड़ गए थे,
यूँ लगा था जैसे मेरे जिस्म से,
सांसें तुम ले गए थे,
तुम्हारे जाने के बाद जैसे,
मैं सपनों की दुनिया से बाहर आई थी,
और सामने हकीकत की
कड़वी सच्चाई थी...
जीने की कोई वजह तब न मिली थी,
दिल कह रहा था
अब क्यों और किसके लिए जिये,
अपना सुख दुख भला अब किससे कहे,
तब दिल ने सब दिल में दबाना सीखा था,
और तुम आँखों से दिल में आ गए हो,
ये मैंने जाना था...
हाँ अब भी आंखों के सामने
जब आता हैं वो मंजर
दिल जार जार रोता है और
कहता है खो दी मैंने इक प्यार भरी नजर..
तब तुम्हारे लिए लिखती थी,
तुम्हारे दिए भावों से मेरी कविता बनती थी,
अब भाव ही नहीं मिलते
तो भला क्या लिखे मेरी कलम?
किसके प्यार में बहे
किसे अपना कहे मेरी कलम
धीरे धीरे कविताएं खो रही हैं,
कल्पना की दुनिया से कुछ कहानियां
जन्म लेने लगी हैं..
सोच रही हूँ अब कलम को
कविताओं की दुनिया से विरक्ति दे दूँ,
न लिखूँ कोई शेर, कविता,
न बहाऊं अब कोई गीतों की सरिता,
गजलों की दुनिया से रिश्ता तोड़ दूँ,
छंदों की अब हर माला को तोड़ दूँ..
शब्दों, चित्रों पर लिख कर क्या करूँगी,
खाली मोबाइल की मेमोरी ही भरूँगी,
कल्पना की दुनिया से
कुछ अनमोल मोती चुनूँगी
और कहानियों का एक संसार बनूँगी,
तब न शामिल होओगे,
तुम या कोई तुम सा मेरी कविताओं में,
न पाऊँगी अकेलापन
तुम या और किसी को याद करके,
न रहेगा फिर इंतजार
किसी के आने और जाने का,
न gm बोलने का, न gn सुनने का,
न किसी के प्यार का, न ही बेरुखी का,
न होगी फिकर न ही चिंता लिखेगी
मेरी कलम फिर बस कहानियाँ लिखेगी..
सोच रही हूँ ये जल्दी ही कर लूँ,
मगर दिल कहे उन बातों का क्या करूँ,
कैसे मैं खुद को खाली करूँ,
तो कह दिया दिल से
फिर तुमसे कहा करूँगी,
उड़ेल कर सब कुछ
तुम संग हाँ तुम संग
मैं तुम्हारी सखी सदा खुश रहूँगी..