गीतिका छंद
गीतिका छंद


वो बड़ा सीधा लगे है, है बड़ा शैतान रे,
है चलाता आंख से वो, प्रेम के हां बान रे।
मैं कहूँ क्या ये करे है, तो बने मासूम वो।
चाल प्रीती की चले है, मैं हटा लूँ आंख जो।
नैन में रहने लगा है वो बना है जान रे,
हो रही है साँझ मैं भी प्रीति की पहचान रे,
है भला मन का नदी सा, भीम सी काया लगे,
रूप उसका मोहना यूँ, प्रभु की माया लगे।