अलंकार:अनुप्रास
अलंकार:अनुप्रास
चमक रही है चाँदनी चहुँ ओर चमक बनकर
छलक रही है रागिनी रात की रानी बनकर,
मन में मनमीत बसा के चली है कोमल नार,
दमक रही है दामिनी देखकर दृश्य मनोहार
प्रीत पतंगा मचल रहा जलने को तैयार,
रूप रंगीला कर रहा जैसे कोई चमत्कार,
खोई है वो प्रीतम में प्रीत का पहने है हार,
प्रीतम औषधि यूँ चाहिए जैसे मन हो बीमार।
मिलन मन का मन से और मन हो रहा अधीर,
यूँ लालायित मन प्रीत को जैसे कोई फकीर,
मांगे है मन दान में दरवाजे खड़े बलवीर,
मिले तो सौगात प्रीत की तो हो जाएं अमीर।
कोमल कली सी नार के कोमल हैं उद्गार,
प्रीत बसी मन प्रीतम की कैसे भाए उपहार
चले आये प्रीतम प्रीत की पायल लिए जो द्वार,
रंग प्रीत के रंग जाए वो भूलाके सारा संसार।