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Rajeev Rawat

Tragedy Inspirational

4.3  

Rajeev Rawat

Tragedy Inspirational

गणतंत्र - दो शब्द

गणतंत्र - दो शब्द

2 mins
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जनता के लिए, जनता का शासन

गणतंत्र का अर्थ न समझे मात्र देते हैं भाषण-


गली गली में शोर मचाते

रंगबिरंगे ध्वज लिए नारे लगाते हमें चाहिए आजादी--

कहीं काम से, कहीं धर्म से और कहीं संबधो से आजादी--

जो गणतंत्र का अर्थ है क्या जो समझ न पाये 

वो भी भीड़तंत्र में हाथ उठाये मांग रहे हैं आजादी - 

गणतंत्र के

रूप बदल गये और बदल गये हैं अर्थ सभी- -

देश की खातिर मरने वालों के बलिदान हो गये ज्यों व्यर्थ सभी--


तोड़ रहे पत्थर लेकर कांच की दीवारों को--

कैसे कैसे नारे लिखकर वीभत्स किया मीनारों को--

थी थोड़ी जो शर्म हया है, बिक गयी बीच बाजारों में--

अपना आशियाना जला दिया है, अपने ही अंगारों नें--

आज समय भी 

थमा थमा सा पूंछ रहा है, देखकर ऐसी बर्बादी - - 

आज हमें बतलाओ क्या यही होती है गणतंत्र में आजादी--

जिस गणतंत्र की 

खातिर कितने मां के बेटे कुर्बान हुए--

रक्त की होली में डूबे कितने, सर संधान हुए--

वह शहीद फांसी पर 

चढते चढते वह यही शब्द तो बोला था--

मां की खातिर जाये जान भले ही पर रंग लिया वसंती चोला था--

अंग्रेजों से आजाद हुए पर अब अपनों से यह आजादी - 

धर्म का बंधन, जाति का बंधन और ऊंच नीच की आजादी - - 

विद्या मांगे चीख चीख कर लक्ष्मी पतियों से आजादी - - 

नारी मांगे नर की ओछी मानसिकता से आजादी--

जनता मांगे रूढ़िवादी विचारों और भ्रष्टाचार से आजादी--

बच्चे मांगें मां-बाप से आजादी - 

इस गणतंत्र के हवन कुंड में हमने अरमानों को जलते देखा - 

रंक से राजा हमने नेताओं को रोज ही बनते देखा - 

अधिकारियों और नेताओं के दर पर

गणतंत्र को झुक कर देते हमने सलामी देते देखा है--

और दो जून की रोटी की खातिर अपनों की करते गुलामी हमने देखा है--

कहीं कहीं तो 

इस गणतंत्र में तन को भी बिकते देखा है-

अधनंगे बदनों को हमने भरी धूप में जलते-तपते देखा है--

बस झंडो के 

रंग बदल गये और नियंत्रको के चोला--

उनकी रूहें कराह रहीं हैं जो मर गये आजादी की खातिर 

कह कर मेरा रंग दे बसंती चोला--

सच्चा गणतंत्र तभी आयेगा

जब समानता और संभावनाओं को एक ही पलड़े में तौला होगा--

भूखे पेट न कोई सोये हर मुख मे निवाला होगा--

जब खुले आम चौराहे पर दानवता दडिंत होगी--

और मानवता बन राजधर्म फिर महिमामंडित होगी--

क्या! आजादी का ऐसा स्वप्न कभी पूरा हो पायेगा--

एक घाट में बकरी शेर बिना आखेट रह पायेगा--

और क्या कभी गणतंत्र के

रामराज्य का स्वप्न धरती पर उतर कर छा पायेगा--

बस इंतजार में बैठे हैं कि वह दिन कब आयेगा।

      


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