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Rajeev Rawat

Tragedy Others

4  

Rajeev Rawat

Tragedy Others

साहित्य की व्यथा--एक व्यंग्य

साहित्य की व्यथा--एक व्यंग्य

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अजीब स्थिति खड़ी हुई

साहित्य स्पर्धा के चक्कर में-

तालियां बजा कर जिता रहे यहां,

साहित्यकार के अहसासों और भावनाओं को,

तालियों के टक्कर में-

जितनी तालियां पिटवा सकते हो 

उतने बड़े साहित्यकार हो बेटा-

यह गुण तो अपनाये हुए थे अब तक केवल नेता-अभिनेता-

कैसे करवटें लें, फंसे अब तो समय के चक्कर में-

तालियां बजा कर जिता रहे यहां,

साहित्यकार के अहसासों और भावनाओं को,

तालियों के टक्कर में-

तुम गांवों की बाते करने वाले-

गरीबों के आँसुओं को भीगी स्याही में लिखने वाले-

फटे वस्त्रों में जो जीवन खोजते-

दुनिया की गलत नीतियों और राजधर्म दिन रात कोसते-

इनके खाली पेटों में

दो दानों के खातिर लिखे तेरे अक्षर को-

क्या तालियां पीटेंगे ये बिना पढ़े निरक्षर तो-? 

नहीं तालियां देना मुझको इससे कोई काम न होगा-

कम से कम मेरा लेखन रिश्तों में बंधकर बिना पढ़े बदनाम न होगा-

जब कुछ खुशियां बाटूंगा इनकी 

और बुझी आंखों में कुछ जीवन की आशा जागेगी-

मेरी विजय तभी होगी जब इनके दिल की धड़कन में खुशियों की ताली बाजेगी-

मैं सीधा सादा बंदा, नहीं हूं घनचक्कर में-

तालियां बजा कर जिता रहे यहां,

साहित्यकार के अहसासों और भावनाओं को,

तालियों के टक्कर में-

             


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