STORYMIRROR

Mousam Rajput

Tragedy

4  

Mousam Rajput

Tragedy

ग्रामीण राजनीति के रैकेट पर शटलकॉक

ग्रामीण राजनीति के रैकेट पर शटलकॉक

1 min
298

वे लोग जो अंधेरे की चारपाई से 

उठना नहीं जानते 

शताब्दियों की सड़ी गली प्रथा के

दरवाज़े से बाहर निकल कर जिन्हें 

आवाज़ उठाना नहीं आता 


जीवन की दुपहरी जिनके लिए 

पवित्र खून साझा करते हुए 

साँझ के तट पर मैली तस्वीर देखते हुए 

रो देने की होती है


 जिनकी हर रात गुजरती है 

अपने राजनेताओं,मालिकों,

दुकानदारों के आगे 

हकलाने की प्रसव पीड़ा से 


गोबर कंडे बिनते हुए दूर खेत में 

जिनकी कल्पना सिमट जाती है 

गिड़गिड़ाहट घुड़कियों और सौदेबाजी की 

अवसाद जनक पगडंडियों की धूल में


फैसलों की तथाकथित किरण 

जिनका रोज गला घोंटती है 

रेडियो अखबार से उठती मज़दूर

चिंता पर 

फक्क से हँस देते हैं फीकी हँसी 

मांग कर लाए हुए छाछ में

अपना भविष्य ढूंढते हुए


ग्रामीण राजनीति के रैकेट पर 

शटलकॉक की तरह जीते लोग 

वर्षों पुराने कुओं से पुरखों के

अपराध उलच कर 

फेंक रहे हैं, प्यास से मरते हुए


गांव में शरण लेने आए 

हम अवारवादियों को 

मेहमान ठहराते हुए

करबद्ध जो आग्रहपूर्ण हैं

दरअसल यह गांव में 

गांव के शरणार्थी हैं 

जिनके बैल बूटे,बक्खर,

जमीन, बैलगाड़ी 

सब छूट गए हैं अपने ही देश में,


इन्होंने नहीं सीखा किन्तु अभी तक 

सीरिया इराक और अफगानिस्तान की

लड़कियों की तरह

देह को देश मानना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy