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Mousam Rajput

Abstract

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Mousam Rajput

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प्रेम और गैंग्रीन

प्रेम और गैंग्रीन

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दरअसल  तुम भूल गई थीं

लेनिन, मार्क्स को पढ़ने के बाद 

वारिश शाह और मीरा को पढ़ना ,

और अब तक तुमने देखी नही 

सीरिया और इराक की लड़कियों की 

मजहब के आगे गिड़गिड़ाती तस्वीरें ,


पीड़ा में 

औऱ कुछ और बुरे होने की सूची में 

वाकई प्रेम का न होना

होने से अधिक ऊपर है लेकिन 


देह से नफरत करती कोई भी स्त्री 

कभी नही चाहती गैंग्रीन जैसी कोई बात 

भले ही नाखूनों के चाकू से निकालतीं रहे

दहशत का मवाद 

या की दिए की लौ में जलाती रहे 

हथेलियों पर भाग्य रेखाएं 


तुमने अंतर्जातीय परिपक्वता के नाम पर 

क्या सीखा कि बारिश में मिट्टी की गंध को 

अमोनिया की तरह महसूस करना 

औऱ हर लिखते हुए हाथ 

पूछती हुई आँखों को संदिग्ध निगाहों से देखना।


मैं इस बात से नहीं बनने देता 

अपने भीतर कोई भी धरणा के बिल 

कि तुम एक मात्र स्त्री नहीं हो 

जिसने प्रेम और गैंग्रीन को एक तरह देखा।


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