पतंग की डोर
पतंग की डोर
जिंदगी में, मेरी तुम
आ मिलो कुछ इस तरह।
धागे की डोर में, पतंग बंध
उड़ती जाती हो, जिस तरह।।
मेरी आशा, उम्मीद को
ऊंचाई देती जाओ इस तरह।
मंजे में, कांच का हो मिश्रण
और खून की लालिमा
हो जिस तरह।।
अंबर को छूती जाओ
इठलाओ, बलखाओ
अधूरी चाहत की तरह।
पर साथ रहो, मेरी डोर के
मन-मंदिर में, भगवान के
उठे, हाथ की तरह।।
ना खो जाना कहीं
बादलों की ओट में।
मैं ढ़ील देता जाऊँ और
तुम तनकर उड़ो
मेरी आशा के आकाश में।।
चाहे जितनी ऊँची उड़ो
पर ओझल, ना होने देना
धरती के आंचल को।
गगन से धरा पर, इंसा दिखते बौने
पतंग व डोर का होता, अटूट संबंध
'मधुर' याद रहे, यह सभी को।।
