सपने -मेरे अपने
सपने -मेरे अपने
सपने तो सपने हैं
अच्छे, बुरे दोनों ही होते।
कभी सुकून दे जाते, कभी
दिल को, बोझिल कर जाते।।
देखा था सपना, बहुत बुरा
पत्नि नहीं दिख, रही थी साथ।
हिल गया, तन-मन सारा
शुक्र था, थी दिन की बात।।
निद्रा में एकाएक, उठ बैठा,
बुरे ख़्वाब ने, झकझोर दिया था।
पत्नि मायके जा चुकी थी
यह ख़्वाब नहीं, हकीक़त था।।
ख़्वाब नहीं, भावनायें हैं दिखती
जैसा सोचकर, हम हैं सोते।
कभी देव दिखते, दानव कभी
सात्विक लोग, सपनों से नहीं
डरते।।
जो होते धीर-गंभीर, कर्मवीर
भाग्य को जो, निर्मित करते।
बुरा ख़्वाब और झूठे सपने
राह में उनकी, रोड़ा न बनते।।
जीवन है, पुण्य कर्मों का फल
निद्रा ना गँवाना, सपनों में।
सपने देख जीया, नहीं जाता
जीना है कीमती,
जाया न कर सपनों में।।