राजनीति (50)
राजनीति (50)




मौजूं हालात में, राजनीति
नजर आये, बेवफा की कसम।
अनगिनत हैं, इसके आशिक
किया वादा, निभाये तो, कैसे सनम।।
जिसको पकड़ायी, उंगली
पहुंचा वह, गिरेबां में।
जतन कितने, ही किये
केश बन मिला, काजल में।।
दूर ही, रहना इससे
दामन न, बने दागदार।
सेवा न, रही अब
राजनीति बन, गई व्यापार।।
सियासत के, ठेकेदार
कर रहे, अपनी मनमानी।
राज रह, गयी राजनीति
नीति हो गई, बेमानी।।
धर्म, जात और वर्गभेद
फैला रहे सियासतदार।
सडांध आ रही, इससे
कहाँ है शास्त्री, अटल जैसे ईमानदार।।
देश की भोली जनता
ऐसी फंसी, इसके चंगुल में।
सहती जा रही, जुल्म धरती सा
ऊफ न कर सके, दुख में।।
तो आओ, सबक सिखायें
पांच सालाना, दिखने वालों को।
चुनें उन्हें, जो पूर्ण करें
राज और नीति, राजनीति को।।