कर्फ्यू (48)
कर्फ्यू (48)
सड़क पर, टहलते देखा मैंने
सिपाही, घसीट रहा था उसे
पूछा तो, उसने आंखें
दिखायी, गुर्राया और कहा।
पता नहीं क्या?
कर्फ्यू लगा है यहाँ।।
बिना पूछे ये घर से
निकला है, दवा लाने।
अपनी बूढ़ी, मां की
सूखी हड्डियाें में
चला है, जान फूंकने। ।
इसका यही है, अपराध
मरने वालों, के लिए
क्यूँ मरने चला, है बेकार।
मैंने कहा, क्यूँ लगा है कर्फ्यू
बता सकते हो, श्रीमान।
सिपाही ने कहा, इंसान
बना, पहले जैसा जानवर।
जब भरता, उसका पेट
तो हवस मिटाने, शरीर नोचता खुश
होता जिस्म, आग के हवाले कर।।
मैंने टटोला, और पूछा
हमें भी, जाना है स्टेशन
पड़े है, बेकार और बिना
काम के धरती
के बोझ है बने।
सिपाही ने कहा, चले जाओ
एक कदम ना, आगे बढ़ो।
जब तक, ट्रेन तुम्हारे
घर पर, ना आये
इस कर्फ्यू में घर
से बाहर, ना निकलो।।