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SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

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SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

एक पौराणिक समझ

एक पौराणिक समझ

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बात पुराणों की हम ढूंढें

काहे को इतिहास में 

ईश्वर तो कण कण में बसा 

सबके आस पास में 


पत्थर कभी गवाही न देते 

लंद फंद हम खुद ही करते 

हर हर कहते नाम हरि का

हरि है कहाँ ज़रा न जानते


वो ऐसे, हम ऐसे, ये तुलना 

जब देने लगे हमें मज़ा 

तभी समझिये, हुआ बंटाधार

वक़्त देने वाला है बड़ी सज़ा 


पूजा की, नमाज़ की जहाँ 

हमको जगह पड़ती हो कम 

उस समाज का समझ लीजिये 

निकल चुका का है पूरा दम


इतिहास के बदले इंसान नहीं 

लालची नेता लिया करते हैं 

भोले भाले लोग गर फंसे तो 

अक्सर लहू ही बहा करते हैं 


धर्म का सच्चा अर्थ तो बन्दों 

पुस्तकों में ठीक ठीक है लिखा

भाग्यवान जरा पढ़िए तो 

कहीं आपको जिद करना दिखा


बैठकर बात करना तो जैसे 

कोई पुरानी बात हो गयी है 

पहले ही दिन से अदालत से 

सबकी मुलाकात हो गयी है 


भटके आजकल रहबर भी 

कवि भी बलबलाने लगे हैं 

देश, उनका, हमारा नहीं 

सबका है, भूलने लगे हैं 


राष्ट्रवाद कोई नारा नहीं 

सुलझी समझ का नाम है 

झाँक कर तुम ठीक से देखो 

रहीम के घर भी राम है।


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