STORYMIRROR

SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

4  

SUNIL JI GARG

Abstract Inspirational

ज्ञान गंगा

ज्ञान गंगा

1 min
270


क्यूँ मेहनतकश इंसान, भविष्य का बोझ लिए फिरते हैं 

कल पैसा आएगा कैसे, चिंता ये रोज़ लिए फिरते हैं।

क्यूँ नियति सबकी अलग अलग है विधि ने आप बनाई 

किसी का जीवन सीधा सादा किसी में आग लगाई।


क्यूँ सोच सभी की रहे बदलती, कई मुखी लोग हो जाते 

रात को कहते दिन, कभी वे दिन को रात बताते।

दुनिया की उलट पुलट में बन्दे चलना सम्हल सम्हल के 

वर्तमान की छड़ी कभी भी नहीं छोड़ना कल पे।


चिंता तो आग है, दीपक की मेहनत के, यही समझना 

मन की बाती, ज्ञान का तेल, करे प्रकाश की रचना।

ऐसे ही, पथ में प्रकाश, फैला कर आगे है बढ़ना 

जीवन तेरा अपना है, इस दुनिया से क्या डरना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract