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Kamal Purohit

Abstract

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Kamal Purohit

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दोस्त

दोस्त

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बिना तक़दीर सच्चा दोस्त कोई पा नहीं सकता।

बिना सुर ताल कोई गीत जैसे गा नहीं सकता।


ज़माने में सभी ही काम रब की मर्ज़ी से होते।

सुनो तुम हुक्म रब का यूँ ही टाला जा नहीं सकता

गढ़ा बैठे नजर सब लोग तेरी मेरी यारी पर,

हमारी दोस्ती को रब नज़र लगवा नहीं सकता।


हवा का रुख़ वे अपनी मर्ज़ी से पलटा तो सकते है।

मगर यारी हमारी कोई भी तुड़वा नहीं सकता।

बदलने को तो धरती चाँद तारे भी बदल जाये,...

हमारी दोस्ती को पर कोई बदला नहीं सकता


हज़ारों रंज है दिल में मगर फिर भी मैं चुप चुप हूँ

कसम झूठी कभी मैं दोस्ती की खा नहीं सकता।

सुदामा कृष्ण जैसी दोस्ती तेरी मेरी यारा,

"कमल" भूखा तू है तो मैं निवाला खा नहीं सकता।


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