'मां ' (रिश्तों की पोटली )
'मां ' (रिश्तों की पोटली )
हंसती साथ हमारे मिल कर
साथ में ही रोती है
लाख हैं रिश्ते जग में लेकिन
मां तो मां होती है
सदा दुलारे लाड़ लड़ाए
और लुटाए ममता
बच्चों के गम को वो अपने
आंसू से धोती है
पाती हमें उदास तो वो भी
हो जाती है व्याकुल
हमें हंसाने को वो मन का
चैन सकल खोती है
खुशियों से भर देती है वो
दामन सबका हंसकर
बोझ मगर चिंताओं का वो
तन्हा ही ढोती है
गम के कांटे सभी छुपाले
अपने ही आंचल में
बीज हमारे आंगन में वो
खुशियों के बोती है
लाख हैं रिश्ते जग में लेकिन
मां तो मां होती है
