'होली में '
'होली में '
भुला के गम सभी चेहरे ही मुस्काते हैं होली में
कि दुश्मन भी तो अपने मीत बन जाते हैं होली में
मुहब्बत के हसीं रंगों से पिचकारी को भर भर के
गुलालों से वो तन मन को भिगो जाते हैं होली में
निगाहें हैं तरस जाती कि जिनकी दीद को अक्सर
वही जलवा मुहब्बत का दिखा जाते हैं होली में
जरा सा हँस के शरमा के औ' चुपके से करीब आके
कि बन के प्यार की खुशबू वो घुल जाते हैं होली में
जो दरवाजे दिलों के बंद मुद्दत से पड़े रहते
खुशी से खुद ही इठला के वो खुल जाते हैं होली में
न आओ तुम बुलाने से तो भी शिकवा नही कोई
चलो हम खुद तुम्हारे पास लौट आते हैं होली मे
कुछ ऐसे रंग होते जो उतर जाते हैं धोने से
मगर कुछ रंग पक्के दिल पे चढ़ जाते है होली में।