गज़ल
गज़ल
पाक दिलों को जब भी मिलते देखा है
सुंदर फूल चमन में खिलते देखा है
चढ़ता सूरज सदा तपन न दे पाया
शाम होते ही उसको ढलते देखा है
कदम समय के साथ मिला न पाया जो
अंत समय में हाथ वो मलते देखा है
वस्ल की बारिश में भीगे उस तन-मन को
आग में बिरहा की भी जलते देखा है
पत्थर दिल जब इश्क के पहलू में बैठा
मोम की तरह उसे पिघलते देखा है
आज है गम तो कभी खुशी भी आएगी
वक्त सभी का यहां बदलते देखा है
जड़ को थामे रखते है जो मिट्टी में
उन पेड़ों को सब ने फलते देखा है
छलनी उनके पैर हुए है कांटों से
सच की राह पे जिनको चलते देखा है
राम राम है मुंह में छुरी बगल में है
बन के छलिया ऐसे छलते देखा है
चेहरे पे मुस्कान ओढ़ने वालों के
सीने में तूफां को पलते देखा है
क्या बतलाएं कुछ जहरीले सांपों को
आस्तीन में अक्सर पलते देखा है