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Rajkumar Jain rajan

Abstract

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Rajkumar Jain rajan

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जीवन और नदी

जीवन और नदी

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अपने बचपन से

आज तक

नदी के के संपूर्ण अस्तित्व को

संवरते और बिखरते

देखा है हमने


अपने स्त्रोत- मुख से

बहती हुई नदी के किनारों पर

जीवन का परिचय

और सभ्यता का संगीत है

अविरल बहती धाराओं का

स्पर्श


कितना मृदुल है

कितना मधुर स्वर हैं

निश्चल मौन का

कितना मोहक रूप है

नदी का


इसके तटबंधों पर

अब कुंठा का अभिनय है

समुद्र में मिलजाने की

परायण पीड़ा है

मिट जाने का गम है

और…..और

मैं सोचता हूँ

कितना साम्य है

जीवन और नदी में !


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