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Rajkumar Jain rajan

Abstract

4.7  

Rajkumar Jain rajan

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कठपुतली

कठपुतली

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फिल्मी भजन की ये 

पंक्तियां-

"ऊपर वाला पासा फैंके

नीचे चलते दांव

अजब समय के पांव"

रह रह कर

मेरे मन को करती रहती 

उद्वेलित 


कि हमारा जीवन भी तो

ऊपर वाले के हाथों से

ही नियंत्रित होता है

और हम निभाते है किरदार

कठपुतली -सा


वक्त किसी की धरोहर नहीं

मेरे मन में जन्म लेती

बहुत- सी अपरिभाषित 

जिज्ञासाएं

जिनका जवाब आज तक

नहीं मिल पाया


वक्त ने बदल दिया 

जीवन के रंगमंच पर

हर एक पात्र का अभिनय

कठपुतली बनकर

अपने जीवन की डोर


किसी और के हाथों में 

थमा देना 

और पर्दे के पीछे से सूत्रधार द्वारा

करवाया जाता है अभिनय


कठपुतली के तो बंधे होते हैं

केवल हाथ और पैर

संम्वेदना के महीन धागों से

जीवन के नाट्यमंच पर


हमारे तो हाथ, पैर, 

आंख, कान, मुंह

यहां तक की 

सोच के तंत्र तक

सब कुछ बांध दिए जाते हैं

अदृश्य हाथों द्वारा


जिनके द्वारा

सभ्यता, संस्कृति 

और परम्पराओं पर

 किया जाता है अतिक्रमण

अनैतिकता, असहिष्णुता,

धर्म और जातिवाद के


भड़काऊ ज़हर से

और नाचते रहते है

कठपुतली से हम

और मानवता को

करते रहते बदरंग


पता ही नही चलता

इन कठपुतलियों को

कौन नचा रहा

और कौन बजा रहा है ताली

जीवन के इस रंगमंच पर

जो असावधान रहेगा

नाचेगा वही


कठपुतली -सा

नचायेगा वही

जिसके हाथ में धागे होंगे।


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