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Rajkumar Jain rajan

Inspirational

4.6  

Rajkumar Jain rajan

Inspirational

श्राद्ध

श्राद्ध

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क्वार मास के शुक्ल पक्ष 

के इंतज़ार में

आशीष सुखों की

पाने की चाह में

पितरों को तर्पण कर


सकल मनोरथ सिद्ध

करने की प्रबल आकांक्षा लिए

मनुज़ 

महालय या पितृ पक्ष में

श्राद्ध करता है

अपने पितरों का


विष्णु, वायु, मत्स्य,वराह

पुराणों में ही नहीं

महाभारत और मनुस्मृति में भी

पितरो को तर्पण

देने का महिमागान है

यह सब

बातें हैं सतयुग की


वर्तमान कलयुग में

मनुष्य कितना खुदगर्ज़ है

क्या यह बताने की

आवश्यकता है

जीते जी जिसने

माता पिता को 


दिया नहीं निवाला

न कभी सकूँन

और जिस काग को

दुत्कारते रहे वर्ष भर

उसको ही भोग धराते


आज सम्मान से

छत पर बुलाते

काग भी

करता इंतज़ार

इन सुहाने दिनों का


पृथ्वी के माथे का

चन्द्र थे

सूरज भी तो थे पिता

वर्षा की रिमझिम शीतलता

देती रही हर पल माता


जिसने दिया जीवन

जिसने दिया सब कुछ

उसको जीते जी

कुछ दे न सके

आज सब

पितरों को तर्पण करने


सकल मनोरथ सिद्ध करने

पाने सुखों के आशीष

श्राद्ध करने

करते है सब

पितृपक्ष याने

महालय का इंतज़ार

कलयुग की कैसी


यह माया

क्या इससे हो जाएंगी

 जीवन नैया बेड़ा पार


जीते जी सम्मान करो

इन पितृ पुरूषों का

तो जीवन वैसे ही

निहाल है

श्राद्ध तो 

केवल भ्रम है

आत्म मुग्धता है

कलयुग की एक

माया मात्र है।


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