मानो या न मानो
मानो या न मानो
कैसे अब मैं तुम्हें बताऊं
जीवन की एक बात
जब मैं होता बहुत अकेला
हर पल आती तेरी याद
सींचता रहा मैं हर पल
जीवन की बगिया को
प्यार भरी यादों से
सुख रहा तन,
मन भी पतझड़ बना
तड़प रहा हूँ मैं
गर्म रेत -सा
तेरी खातिर
जबसे तुमसे दूर हुआ
मानो या न मानो प्रिये
कैसे मन की बात बताऊं
आस का फिर दीप जलाकर
चल पड़ा हूँ फिर सफर में
फिर से अगर साथ मिल जाये
बनकर हृदय के द्वार में
इस दुनिया से लड़ जाऊंगा
फिर मरुस्थल में
प्यार की गंगा बहाऊंगा
तुम मानो या न मानो
वक्त लौटकर फिर आएगा
आस का दीपक जलाकर
चल पड़ा हूँ राह में।