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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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नसीब

नसीब

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नजरों का मिलना,

एक इत्तफाक,

फिर शुरू हुई,

ख्यालों वाली रात।


इशारे इधर से,

नजारे उधर से,

फिर नहीं पता,

कौन किधर से ?


मिलने का सिलसिला,

शुरू हुआ बार - बार,

प्यासे अधरों पर,

हुए तेज वार।


हर बार ये ज़िस्म,

माँगे कुछ और,

कभी धीरे से,

कभी कहे लगा जोर।


बढ़ती बेचैनी,

छटपटाता बदन,

तेरे लिए भीगे,

अब ये तन - मन।


होश हुए बेखबर,

जब मिले तेरे नगर,

एक सुकून भरी साँस पाके,

चले अपनी डगर।


वो नजरों का धोखा,

दे गया ज़हर,

सूजी रही आँखे,

आठों पहर।


अलग हुए रास्ते,

खिले नए गुल ,

मगर धूमिल ना हुए,

वो यादों के पल।


आज भी बना है ,

वो रिश्ता बदनाम,

जिसमे जुड़े हैं,

हमे दोनों के नाम। 


कुछ रिश्ते अनकहे,

होते हैं बहुत अजीब,

जिनके बनने से ही,

बनते हैं नसीब। 


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