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अनिल कुमार केसरी

Abstract

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अनिल कुमार केसरी

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मंदिर-मस्ज़िद के झगड़े

मंदिर-मस्ज़िद के झगड़े

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अल्लाह ने मंदिर तोड़ा,

भगवान ने मस्ज़िद गिरा दी।

धर्म पर अंगुलियाँ क्या उठी,

आदमी ने धरती श्मशान बना दी।


भगवान ने मंदिर से देखा,

अल्लाह ने मस्ज़िद से नजरें दौड़ाई।

बोले, हम कहाँ झगड़े ?

आदमी की आदमी से है विचारों की लड़ाई।

 

राम के बगल में अल्लाह बैठे,

अल्लाह के संग राम खड़े है।

दोनों मित्र-सखा बनके रहते,

आदमी था दुश्मन, दुश्मन वह नहीं है।


मंदिर पर पत्थर आया,

मस्ज़िद की दीवारें ढह गई।

मस्ज़िद ने पत्थर झेले,

मंदिर के सिर इल्ज़ाम हो गये।


भगवान की मूरत टूटी,

मस्ज़िद पर हमला हो गया।

मस्ज़िद की ईंटें बिखर पड़ी,

मंदिर बदनाम हो गया।


न अल्लाह लड़ रहे है,

न भगवान झगड़ रहा है।

मंदिर-मस्ज़िद की दुश्मनी,

आदमी, आदमी से लेकर चल रहा है।


न अल्लाह ने मंदिर तोड़ा,

न भगवान ने मस्ज़िद गिराई।

धर्म आदमी ने बनाया,

धर्म की आग आदमी ने लगाई।


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